Monday 17 July 2017

हरदा - मरीजों को सबसे सस्ती दवा देने जिले में नही हे एक भी प्रधानमंत्री औषधि केंद्र !

( मरीजों को सबसे सस्ती दवा देने जिले में नहीं एक भी जन औषधि केंद्र, ब्रांडेड व प्रोपागेंडा दवाओं के मुकाबले 10 गुना सस्ती दवा उपलब्ध कराने की पीएम की योजना फाइलों तक  ही अटकी रही,जन औषधि केंद्र,कमीशन के खेल में डॉक्टर नही लिखते जेनरिक दवाएं,इसलिए आती है मरीजो की जेब होती ज्यादा खाली। मरीजों को सबसे सस्ती दवा देने जिले में नहीं एक भी जन औषधि केंद्र। ब्रांडेड व प्रोपागेंडा दवाओं के मुकाबले 10 गुना सस्ती दवा उपलब्ध कराने की पीएम की योजना फाइलों तक भी नहीं पहुंच पाई जिसका खमियाजा आम जन उठा रहे हे वही शासकीय अस्पताल में जो संचालित हो रहा है वो सिर्फ अस्पताल मरीज तक सीमित है मगर ये औषदि केंद्र ओपन रहेगा जिसका लाभ सभी को मिल सकेगा )*

लेकिन जिले के दृष्टिकोण से संभवतः यह पहला ऐसा मामला है जब कोई योजना फाइलों तक ही नहीं पहुंच पाई, जबकि इस योजना की महत्वता और आवश्यकता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि यह आमजन के स्वास्थ से सीधे जुड़ी है। ब्रांडेड और प्रोपागेंडा दवाओं के मुकाबले 10 गुना सस्ती दवा उपलब्ध कराने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जन औषधि केंद्र योजना शुरू की थी, इसके लिए सरकार केंद्र खोलने वाले व्यक्ति या फर्म को आकर्षक लाभ भी दे रही थी, बावजूद इसके जिले में अब तक कोई जन औषधि केंद्र नहीं खुल सका। योजना से जुड़े अधिकारियों की ही मानें तो 30 से 40 प्रतिशत कमीशन के खेल में डॉक्टर जेनेरिक दवाएं नहीं लिखते हैं। इसलिए मरीजों को सबसे सस्ती दवा देने के लिए जिले में एक भी जन औषधि केंद्र नहीं खुल सका है। इधर स्वास्थ विभाग ने भी इस योजना के नाम पर कुछ नही किया, न ही डॉक्टर्स को जेनेरिक दवाएं लिखने के निर्देश दिए और न ही योजना का प्रचार प्रसार किया। ऐसे में मरीजों को जो दवा 10 रुपए की है, उसके 100 रुपए तक दाम चुकाने पड़ रहे हैं।

🔹 *दोनों का शरीर पर होता है समान प्रभाव..*

जन औषधि स्टोर्स का सेट-अप केवल जेनेरिक दवाइयां उपलब्ध करवाने के लिए ही हुआ है। जेनेरिक दवाइयां ब्रांड रहित दवाइयां होती हैं जिनकी गुणवत्ता और थेराप्यूटिक वैल्यू ब्रांडेड दवाइयों के समान होती है परंतु इनकी कीमत इनके समान ब्रांडेड दवाइयों से काफी कम होती है। सामान्यतः ब्रांडेड दवाइयां उनके समान थेराप्यूटिक वैल्यू वाली ब्रांड रहित (जेनेरिक) दवाइयों के मुकाबले महंगे दामों पर बेची जाती हैं जबकि दोनों का शरीर पर प्रभाव समान होता है। आम जनता को इन महंगी ब्रांडेड दवाइयों के विकल्प के रूप में सस्ती दवाइयां उपलब्ध करने के लिए फार्मा एडवाइजरी फोरम ने जिलों में प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र (पीएमजेएके) खोलकर इनके द्वारा जेनेरिक दवाइयों की बिक्री सुनिश्चित करने का निर्णय हुआ।

🔹  *ऐसे समझें मुनाफे का गणित.. पर आप भी हालत के आगे मजबूर होते है..*

जिले में डॉक्टर्स दवा बेचने पर मिलने वाले कमीशन को भी नहीं छोड़ना चाहते, इसलिए अधिकतर ने अपने स्वयं के क्लीनिक के बाजू में ही मेडिकल स्टोर्स खोलकर बैठे हैं। यहां वे ज्यादा प्रिंट रेट की जेनेरिक या ब्रांडेड दवाएं लिखते हैं, जो उन्हीं के मेडिकल स्टोर पर मिलती हैं। मरीज से ली जाने वाली फीस तो डॉक्टर्स की होती ही है, इसके अलावा यदि मरीज डॉक्टर्स के मेडिकल से ही दवाएं लें तो 20 प्रतिशत कमीशन और प्रत्येक दवा पर मिलने वाला अतिरिक्त 30 से 40 प्रतिशत कमीशन डॉक्टर्स को मिलता है। कुल मिलाकर यदि डॉक्टर्स का स्वयं का मेडिकल स्टोर है तो दवा पर 50 से 70 फीसदी कमीशन और यदि मेडिकल स्टोर्स डॉक्टर्स का नहीं है तब भी दवा पर कंपनी की ओर से मिलने वाला 30 से 40 प्रतिशत का कमीशन कहीं नहीं गया। डॉक्टर दवाओं के कमीशन के अलावा पैथोलॉजी, एक्स -रे, अल्ट्रा साउंड, सीटी स्कैन व एमआरआई आदि जांचों में भी कमीशन वसूल करते हैं। ऐसा अक्सर होते आया है स्वाथ्य से जुड़े महकमे में ।

🔹 *जानिये कौन- कौन से प्रकार की होती हैं दवाएं जो आपको भी नही पता होता है..*

1. *ब्रांडेड दवाए*ं : यह वह दवाएं होती हैं जिनकी कंपनी बाजार में पहले से स्थापित हो चुकी है, जो ज्यादा बिकती है, इसलिए इनमें डॉक्टर्स और मेडिकल स्टोर्स संचालक का कमीशन कम होता है। सिपला, ल्यूपिन जैसी अन्य कंपनी ब्रांडेड कंपनी में शामिल हैं।

2. *प्रोपागेंडा दवाएं* : आजकल यह दवाएं बाजार में सबसे ज्यादा हैं। मेडिकल लाइन में इसका सीधा सा अर्थ ऐसी दवाओं से लगाया जाता है जिसमें डॉक्टर्स का कमीशन 30 से 40 प्रतिशत तक होता है। जाहिर सी बात है, इसलिए यह सबसे ज्यादा प्रीसकिपशन में लिखी जाती है।

3. *जेनेरिक दवाएं*: सामान्य शब्दों में समझा जाए तो दवाएं नाम से नहीं उसके फार्मूले से असर करती हैं। ब्रांडेड हो या प्रोपागेंडा या फिर जन औषधि केंद्र से मिलने वाली जेनेरिक दवा, इन सबका फार्मूला एक होता है, असर भी एक सा होता है। ब्रांड नहीं होने के कारण यह 10 गुना तक सस्ती होती है।

🔹 *कौन खोल सकता है औषदि केंद्र क्या है मापदंड ..*

कोई भी बी फार्मा और डी फार्मा डिग्रीधारी व्यक्ति जन औषधि केंद्र खोलने के लिए अप्लाई कर सकता है। कोई भी आर्गेनाईजेशन जैसे रेपुटेड एनजीओ/चेरिटेबल आर्गेनाईजेशन भी इनके लिए अप्लाई कर सकता है@नवदुनिया

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