Friday 7 December 2018

मध्यप्रदेश एग्जिट पोल 2018 - भाजपा बहुमत का आंकड़ा छूने के करीब पर एंटी इंकेबेंसी हावी !

*(एग्जिट पोल के मुताबिक मध्य प्रदेश में सत्तारूढ़ बीजेपी और कांग्रेस के बीच नजदीकी मुकाबला दिख रहा है.)*


🔹 एनडीटीवी के पोल ऑफ एग्जिट पोल्स के मुताबिक राज्य की 230 सीटों में से भाजपा को 118 सीटें मिलती दिख रही हैं. तो कांग्रेस को 101 सीटें मिल सकती हैं. जबकि बीएसपी के खाते में 4 और अन्य के खाते में 7 सीटें जा सकती हैं. 


🔹 टाइम्स नाउ-वीएमआर 

टाइम्स नाउ वीएमआर को एग्जिट पोल में बीजेपी का पलड़ा भारी नजर आ रहा है। इसके मुताबिक 126 सीटों के साथ बीजेपी को बहुमत मिल सकता है। 

बीजेपी- 126 

कांग्रेस- 89 

अन्य- 15 


🔹 ऐक्सिस माई इंडिया 

ऐक्सिस माई इंडिया के मुताबिक राज्य में कांग्रेस को 41 तो वहीं बीजपी को 40 प्रतिशत वोट मिले हैं। 19 प्रतिशत वोटर्स ने अन्य दलों को चुना है। 

बीजेपी- 102-120 

कांग्रेस- 104-122 

अन्य- 4-11 


लगातार एग्जिट पोल अंतिम परिणाम से पहले कुछ तस्वीर साफ करते है सरकार की आखिर इतना हाईटेक होने के बाद भी ये एग्जिट पोल एक दम सही आंकड़ों का पता नहीं क्यों नहीं लगा पाते है और अनेको सर्वे एजेंसीज अलग अलग परिणाम दिखा रहे है। पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों में वोट डाले जाने के बाद से ही सबकी नजर एग्जिट पोल पर टिकी है लेकिन क्या ये एग्जिट मतदाता का नब्ज पहचानने में कारगर रहते हैं. इस सवाल के जवाब कभी हां तो कभी ना में होता है. आखिर इतना हाईटेक होने के बाद भी ये एग्जिट पोल एक दम सही आंकड़ों का पता नहीं क्यों नहीं लगा पाते है. इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए एग्जिट पोल कराने वाली एजेंसियों से पुष्टि हुई.एग्जिट पोल करने वालों के अपने तर्क हैं. विश्लेषकों की मानें तो लगातार कोशिश के बाद भी आंकड़ों के सही नहीं होने के पीछे का सबसे बड़ा कारण मेल एंड फॉरवर्ड डॉमिनेटिंग फैक्टर है. इसको समझने के लिए एग्जिट पोल कराने वाली एजेंसी के सैंपल लेने के तरीके को समझना होगा. दरअसल सैंपल लेने के लिए एजेंसियां मतदान केन्द्र के बाहर वोट डालकर बाहर आने वालों से बात करती है. कभी यह 8 लोगों से बात करते हैं तो कभी 10 लोगों से वे कहते हैं, 'महिलाएं और आदिवासी लोग अभी भी मीडिया से उतना खुलकर बात नहीं करते जितना की पुरुष और सवर्ण मतदाता करते हैं. ऐसे में सवर्ण और पुरुष मतदाताओं की संख्या ज्यादा हो जाती है जिसका असर एग्जिट पोल के नतीजों पर पड़ता है. हालांकि उसके सुधार के लिए कई बार महिलाओं और पिछड़े आदिवासी मतदाता को संख्या के हिसाब से परसेंटेज में शामिल किया जाता है. लेकिन फिर भी ये सख्या बराबरी की नहीं होती. वही एक तर्क ये भी है कि महिला और दलित आदिवासी और सवर्ण वोटरों की संख्या के हिसाब से उनको प्रतिशत देकर इस गड़बड़ी को दुरुस्त किया जा सकता है. लेकिन आंकड़े सटीक न होने के लिए उनका अलग तर्क है.आंकड़ों का खेल बाजार बिगाड़ रहा है. दरअसल हर न्‍यूजरूम अपने दर्शकों को सीधे-सीधे सीटों के गणित समझाता है लेकिन एक्जिट पोल में ऐसा कोई आंकड़ा आता ही नहीं जिससे सीटों के समझा जा सकता है. ये जरूरी नहीं है कि ज्यादा वोट परसेंटेज पाने वाली पार्टी सबसे बड़ी पार्टी हो जबकि न्यूजरूम में ज्यादा सीट पाने वाली पार्टी को सबसे बड़ा पार्टी बना दिया जाता है.वही 2004 के आम चुनाव और कर्नाटक के विधानसभा चुनाव इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं. जब ज्यादा वोट प्रतिशत पाने वाली पार्टियां सीटों में कई बार ऐसा भी होता है जब न्यूज़ रुम में बैठे लोग प्लस-माइनस के आंकड़ों को भी अपने हिसाब से बदल देते हैं उसका असर एग्जिट पोल के पूरे परिणाम पर पड़ता है.


मादिक रुनवाल

  शब्द सारांश

   हरदा ब्यूरो

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