Friday 28 July 2017

हरदा - 30 जुलाई को सिद्धनाथ मंदिर नेमावर से काँवड़ यात्रा का शुभारंभ!

हर साल की तरह इस बार भी 12 वे साल में धर्म रक्षा समिति द्वारा विशाल काँवड़ यात्रा का 30 जुलाई को नेमावर के सिद्धनाथ मंदिर से माँ नर्मदा का जंल कावड़िये हाथ में लिए अपने अपने जत्थे के साथ केसरिया वस्त्र धारण कर जय भोले के जयघोष के साथ सुबह से निकलेंगे।इस से जुडी आयोजक समिति धर्म रक्षा समिति हर साल की तरह अनेको सदस्य मिलके इस विशाल कावड़ यात्रा की देख रेख करेगे जैसी जैसी कांवड़ियों को व्यवस्था लगेगी वो वो पद यात्रा के दौरान मुहैया करवाई जाएगी। साथ ही 30 जुलाई से शुरू होने वाली ये यात्रा नेमावर से हरदा फिर हरदा से चारुवा के प्राचीन गुप्तेश्वर मंदिर पद यात्र के रूप में हाजरो कावड़िये जंल चढाने पहुँचेगे वही यात्रा का बीच बीच में अनेको जगह स्वगात सत्कार और स्टाल लगाकर सुधा को शांत करने के खासे इंतजाम भी किये गए है जहाँ कावडियों को यात्रा के दौरान दिक्कत का सामना न करना पड़े। वही इस बार भी जो सबसे अच्छी व् सुंदर काँवड़ सजा के श्रृंगार के साथ लाएंगे उसे समिति द्वारा विशेष पुरूस्कार राशि प्रदान की जॉएगी।
नेमावर से निकली ये कावड़ यात्रा का होटल मानसरोवर से लाव लश्कर के साथ बैंड की धुन पर जय भोले के भजनों पर शहर से शोभा यात्रा निकाली जाएगी जिसमें हाजरो शिव भक्त शामिल होंगे। वही बीच में मसनगाव में कावडियों के रुकने और खाने की व्यवस्था भी की गई है। वही कावड़ यात्रा का समापन 31 जुलाई को दोपहर 12 बजे चारुवा ( खिरकिया ) के प्राचीन गुप्तेश्वर मंदिर में होगा ।

🔹 *क्‍यों की जाती हैं कांवड़ यात्रा..*

ऐसा माना जाता है कि यह यात्रा भगवान शिव को प्रसन्‍न करने का सबसे सरल तरीका है. कांवड़ से ज्योतिर्लिंगों पर गंगाजल या पवित्र जल चढ़ाने से भोलेनाथ प्रसन्‍न होकर आपकी हर मनोकामना को पूरा कर देते हैं. इसके पीछे की कथा इस प्रकार है कि जब समुद्र मंथन के बाद 14 रत्‍नों में विष भी निकला, तो भगवान शिव ने उस विष को पीकर सृष्टि की रक्षा की. विष के प्रभाव को कम करने के लिए भगवान शिव ने दरांती चांद को अपने शीर्ष पर धारण कर लिया. उसी समय से ये मान्‍यता है कि अगर गंगाजल को शिवलिंग पर चढ़ाने से विष का प्रभाव कम होता है जिससे भगवान शिव प्रसन्‍न होते हैं और भक्तो की मनोकामना पूर्ण होती है।वही एक मान्यता ये भी हे की माता पार्वती जी भी भगवान शिव को प्रसन्न करने हेतु अभिजीत काल में जंल शिव जी पर अंगीकृत कर उनके दर्शन लाभ लेती थी जो पौराणिक कथाओं में उल्लेखित हे।

🔹 *यात्रा का महत्‍व और फल होता है ..*

माना जाता है कि कंधे पर कांवड़ रखकर शिव नाम लेते हुये चलने से काफी पुण्‍यार्जन होता है और हर पग के साथ एक अश्‍वमेघ यज्ञ के समतुल्‍य फल की प्राप्ति होती है. यह यात्रा मन को शांति प्रदान कर हमें जीवन की हर कठिन परिस्थिति का सामना करने की शक्ति देती है.

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